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श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा 🔱


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🌼 श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा की पूरी कहानी (पूर्ण कथा) – सरल और भावपूर्ण भाषा में 🌼

🛕 परिचय

पुरी (उड़ीसा) में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व की सबसे भव्य धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा के रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाने और लौटने की यात्रा है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

📖 पौराणिक कथा (Mythological Story)

🪔 कथा की शुरुआत:

एक बार मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ (जो श्रीकृष्ण का ही रूप हैं) से नाराज़ हो गईं और उन्हें छोड़कर चली गईं। लक्ष्मी के जाने से वैकुंठ में वैभव और समृद्धि कम हो गई।

भगवान को यह अनुभव हुआ कि उन्हें लोक कल्याण के लिए अपने भक्तों के बीच जाना चाहिए। तभी उन्होंने विचार किया कि वे अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ पुरी नगर की जनता को दर्शन देने जाएँगे।

इसलिए, उन्होंने अपने मंदिर (श्रीजगन्नाथ मंदिर) से बाहर निकलने का निश्चय किया और रथ यात्रा की शुरुआत की।

🏠 मौसी के घर जाना (गुंडिचा मंदिर)

  • मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी मौसी (गुंडिचा देवी) के घर जाते हैं।

  • इस यात्रा में भगवान नव-निर्मित रथों पर बैठकर पुरी के श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं।

  • वहाँ 7 दिन तक विश्राम करते हैं और फिर बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा) के जरिए वापस आते हैं।

तीनों रथों की जानकारी

देवता

रथ का नाम

रंग

पहिये

जगन्नाथ

नंदिघोष

लाल-पीला

16

बलराम

तालध्वज

लाल-हरा

14

सुभद्रा

दर्पदलना

काला-लाल

12

  • रथ पूरी तरह से नीम की पवित्र लकड़ी से बनाए जाते हैं, बिना किसी लोहे के उपयोग के।

  • हर साल नए रथ बनते हैं।

🧹 चेरा-पंहारा अनुष्ठान

  • यात्रा से पहले पुरी के राजा स्वयं सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं। इसे "चेरा-पंहारा" कहते हैं।

  • यह दर्शाता है कि भगवान के सामने राजा और रंक सभी समान हैं।

🪢 रथ खींचने का महत्व

  • भगवान के रथ को खींचने का महापुण्य माना जाता है।

  • मान्यता है कि रथ की रस्सी को छूने से भी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

🌈 महत्व और संदेश

  1. ईश्वर को आम जनता के बीच लाने की परंपरा– मंदिर के बाहर आकर भगवान सबको दर्शन देते हैं, चाहे वो किसी जाति, वर्ग या धर्म का हो।

  2. सामाजिक समानता का संदेश– रथ खींचने में सब भाग लेते हैं। राजा, अधिकारी, आमजन – सब समान।

  3. भक्ति और सेवा का योग– यह पर्व बताता है कि केवल पूजा नहीं, सेवा भी धर्म है।

📜 अन्य मान्यताएँ

  • कहा जाता है कि रथ यात्रा के दिन स्वयं श्रीकृष्ण की आत्मा रथ पर विराजमान होती है।

  • जो भक्त इस दिन दर्शन करता है या रथ खींचता है, उसका जन्मों-जन्मों का पुण्य फलित होता है।

🏁 अंतिम पड़ाव – नीलाद्रि विजय

  • जब भगवान वापस अपने मूल मंदिर लौटते हैं तो यह पर्व "नीलाद्रि विजय" कहलाता है।

  • इससे पहले मां लक्ष्मी रुष्ट होती हैं, क्योंकि उन्हें यात्रा में साथ नहीं ले जाया गया।

  • फिर भगवान उन्हें मनाते हैं और फिर मंदिर में प्रवेश करते हैं।

🌟 संक्षेप में:

"जगन्नाथ रथ यात्रा" केवल एक उत्सव नहीं, यह भक्ति, प्रेम, सेवा और समानता का महापर्व है।इसमें भगवान स्वयं भक्तों के पास आते हैं – यह वही क्षण होता है जब ईश्वर और भक्त का मिलन संभव होता है।

🌼 भगवान श्री जगन्नाथ जी के 108 नाम (श्री जगन्नाथ अष्टोत्तर शतनामावलि) 🌼(यह नाम संकल्प, पूजा, जप, स्तुति और ध्यान में उपयोगी हैं।)आप इनका जाप कर सकते हैं—एक-एक नाम के साथ “नमः” जोड़ना शुभ माना जाता है।

🕉️ श्री जगन्नाथ जी के 108 पवित्र नाम

  1. श्री जगन्नाथ

  2. श्री बलभद्र सखा

  3. श्री नीलांचल नाथ

  4. श्री दारु ब्रह्म

  5. श्री नील माधव

  6. श्री विश्वेश्वर

  7. श्री विश्वात्मा

  8. श्री विश्वनाथ

  9. श्री विश्वरूप

  10. श्री पुरुषोत्तम

  11. श्री कृष्णावतार

  12. श्री अच्युत

  13. श्री गोविंद

  14. श्री वासुदेव

  15. श्री हरि

  16. श्री यशोदानंदन

  17. श्री देवकीनंदन

  18. श्री नंदलाल

  19. श्री रासबिहारी

  20. श्री मुरलीधर

  21. श्री गिरीधर

  22. श्री गोपीवल्लभ

  23. श्री श्रीधर

  24. श्री राधानाथ

  25. श्री गोपाल

  26. श्री माधव

  27. श्री श्यामसुंदर

  28. श्री द्वारिकानाथ

  29. श्री पार्थसारथी

  30. श्री मुरारी

  31. श्री केशव

  32. श्री मधुसूदन

  33. श्री कन्हैया

  34. श्री देवकीसुत

  35. श्री कमलनयन

  36. श्री कमलापति

  37. श्री चक्रधर

  38. श्री शंखधारी

  39. श्री गदाधर

  40. श्री पद्मनाभ

  41. श्री लक्ष्मीनाथ

  42. श्री नारायण

  43. श्री जनार्दन

  44. श्री अधोक्षज

  45. श्री अनंत

  46. श्री विष्णु

  47. श्री त्रिविक्रम

  48. श्री नरसिंह

  49. श्री वामन

  50. श्री राम

  51. श्री परशुराम

  52. श्री बलराम

  53. श्री हयग्रीव

  54. श्री कपिलमुनि

  55. श्री दत्तात्रेय

  56. श्री वेदव्यास

  57. श्री बुद्ध

  58. श्री कल्कि

  59. श्री सुदर्शन भृता

  60. श्री गरुड़ारूढ़

  61. श्री त्रिनेत्र

  62. श्री चतुरभुज

  63. श्री चारुदेव

  64. श्री नीलवर्ण

  65. श्री चतुर्वेदमूर्ति

  66. श्री सत्यव्रत

  67. श्री धर्मपालक

  68. श्री भक्तवत्सल

  69. श्री भवरोगनाशक

  70. श्री संकटनाशक

  71. श्री पापविनाशक

  72. श्री करुणासागर

  73. श्री अचिन्त्य

  74. श्री अगाध

  75. श्री अनन्तशक्ति

  76. श्री श्रीनिवास

  77. श्री भक्तप्रिय

  78. श्री भक्तवत्सल

  79. श्री कल्याणरूप

  80. श्री सच्चिदानंद

  81. श्री परात्पर

  82. श्री निरंजन

  83. श्री योगेश्वर

  84. श्री मायापति

  85. श्री लीलामाधव

  86. श्री देवाधिदेव

  87. श्री पुरुषोत्तम

  88. श्री ब्रह्मस्वरूप

  89. श्री महामाया

  90. श्री मोहन

  91. श्री व्रजविहारी

  92. श्री नित्यलीलासंयुक्त

  93. श्री भक्तार्तिनाशक

  94. श्री धर्मसंस्थापक

  95. श्री भक्तनिवास

  96. श्री नित्यानंद

  97. श्री शुभाङ्कर

  98. श्री दीनबंधु

  99. श्री सच्चिद्रूप

  100. श्री आत्माराम

  101. श्री नीलाचलपति

  102. श्री सुभद्रासहित

  103. श्री बलभद्रसहित

  104. श्री लोकनाथ

  105. श्री रथचालक

  106. श्री रथारूढ़

  107. श्री मौसिमंदिरवासी

  108. श्री नीलाद्रिनाथ


🙏 जप विधि (संक्षेप में)


  • श्रद्धा से शुद्ध आसन पर बैठकर, कम से कम 108 नामों का स्मरण करें।

  • हर नाम के बाद "नमः" जोड़ सकते हैं:उदाहरण: “श्री जगन्नाथाय नमः”, “श्री नीलमाधवाय नमः” आदि।

  • जप के बाद “जय जगन्नाथ” बोलें।

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जय जगन्नाथ! 🌸🙏 जय जगन्नाथ! 🙏

 
 
 

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