श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा 🔱
- Acharya Neeraj sharma
- Jun 28
- 4 min read

🌼 श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा की पूरी कहानी (पूर्ण कथा) – सरल और भावपूर्ण भाषा में 🌼
🛕 परिचय
पुरी (उड़ीसा) में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व की सबसे भव्य धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा के रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाने और लौटने की यात्रा है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
📖 पौराणिक कथा (Mythological Story)
🪔 कथा की शुरुआत:
एक बार मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ (जो श्रीकृष्ण का ही रूप हैं) से नाराज़ हो गईं और उन्हें छोड़कर चली गईं। लक्ष्मी के जाने से वैकुंठ में वैभव और समृद्धि कम हो गई।
भगवान को यह अनुभव हुआ कि उन्हें लोक कल्याण के लिए अपने भक्तों के बीच जाना चाहिए। तभी उन्होंने विचार किया कि वे अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ पुरी नगर की जनता को दर्शन देने जाएँगे।
इसलिए, उन्होंने अपने मंदिर (श्रीजगन्नाथ मंदिर) से बाहर निकलने का निश्चय किया और रथ यात्रा की शुरुआत की।
🏠 मौसी के घर जाना (गुंडिचा मंदिर)
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी मौसी (गुंडिचा देवी) के घर जाते हैं।
इस यात्रा में भगवान नव-निर्मित रथों पर बैठकर पुरी के श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं।
वहाँ 7 दिन तक विश्राम करते हैं और फिर बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा) के जरिए वापस आते हैं।
तीनों रथों की जानकारी
रथ पूरी तरह से नीम की पवित्र लकड़ी से बनाए जाते हैं, बिना किसी लोहे के उपयोग के।
हर साल नए रथ बनते हैं।
🧹 चेरा-पंहारा अनुष्ठान
यात्रा से पहले पुरी के राजा स्वयं सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं। इसे "चेरा-पंहारा" कहते हैं।
यह दर्शाता है कि भगवान के सामने राजा और रंक सभी समान हैं।
🪢 रथ खींचने का महत्व
भगवान के रथ को खींचने का महापुण्य माना जाता है।
मान्यता है कि रथ की रस्सी को छूने से भी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🌈 महत्व और संदेश
ईश्वर को आम जनता के बीच लाने की परंपरा– मंदिर के बाहर आकर भगवान सबको दर्शन देते हैं, चाहे वो किसी जाति, वर्ग या धर्म का हो।
सामाजिक समानता का संदेश– रथ खींचने में सब भाग लेते हैं। राजा, अधिकारी, आमजन – सब समान।
भक्ति और सेवा का योग– यह पर्व बताता है कि केवल पूजा नहीं, सेवा भी धर्म है।
📜 अन्य मान्यताएँ
कहा जाता है कि रथ यात्रा के दिन स्वयं श्रीकृष्ण की आत्मा रथ पर विराजमान होती है।
जो भक्त इस दिन दर्शन करता है या रथ खींचता है, उसका जन्मों-जन्मों का पुण्य फलित होता है।
🏁 अंतिम पड़ाव – नीलाद्रि विजय
जब भगवान वापस अपने मूल मंदिर लौटते हैं तो यह पर्व "नीलाद्रि विजय" कहलाता है।
इससे पहले मां लक्ष्मी रुष्ट होती हैं, क्योंकि उन्हें यात्रा में साथ नहीं ले जाया गया।
फिर भगवान उन्हें मनाते हैं और फिर मंदिर में प्रवेश करते हैं।
🌟 संक्षेप में:
"जगन्नाथ रथ यात्रा" केवल एक उत्सव नहीं, यह भक्ति, प्रेम, सेवा और समानता का महापर्व है।इसमें भगवान स्वयं भक्तों के पास आते हैं – यह वही क्षण होता है जब ईश्वर और भक्त का मिलन संभव होता है।
🌼 भगवान श्री जगन्नाथ जी के 108 नाम (श्री जगन्नाथ अष्टोत्तर शतनामावलि) 🌼(यह नाम संकल्प, पूजा, जप, स्तुति और ध्यान में उपयोगी हैं।)आप इनका जाप कर सकते हैं—एक-एक नाम के साथ “नमः” जोड़ना शुभ माना जाता है।
🕉️ श्री जगन्नाथ जी के 108 पवित्र नाम
श्री जगन्नाथ
श्री बलभद्र सखा
श्री नीलांचल नाथ
श्री दारु ब्रह्म
श्री नील माधव
श्री विश्वेश्वर
श्री विश्वात्मा
श्री विश्वनाथ
श्री विश्वरूप
श्री पुरुषोत्तम
श्री कृष्णावतार
श्री अच्युत
श्री गोविंद
श्री वासुदेव
श्री हरि
श्री यशोदानंदन
श्री देवकीनंदन
श्री नंदलाल
श्री रासबिहारी
श्री मुरलीधर
श्री गिरीधर
श्री गोपीवल्लभ
श्री श्रीधर
श्री राधानाथ
श्री गोपाल
श्री माधव
श्री श्यामसुंदर
श्री द्वारिकानाथ
श्री पार्थसारथी
श्री मुरारी
श्री केशव
श्री मधुसूदन
श्री कन्हैया
श्री देवकीसुत
श्री कमलनयन
श्री कमलापति
श्री चक्रधर
श्री शंखधारी
श्री गदाधर
श्री पद्मनाभ
श्री लक्ष्मीनाथ
श्री नारायण
श्री जनार्दन
श्री अधोक्षज
श्री अनंत
श्री विष्णु
श्री त्रिविक्रम
श्री नरसिंह
श्री वामन
श्री राम
श्री परशुराम
श्री बलराम
श्री हयग्रीव
श्री कपिलमुनि
श्री दत्तात्रेय
श्री वेदव्यास
श्री बुद्ध
श्री कल्कि
श्री सुदर्शन भृता
श्री गरुड़ारूढ़
श्री त्रिनेत्र
श्री चतुरभुज
श्री चारुदेव
श्री नीलवर्ण
श्री चतुर्वेदमूर्ति
श्री सत्यव्रत
श्री धर्मपालक
श्री भक्तवत्सल
श्री भवरोगनाशक
श्री संकटनाशक
श्री पापविनाशक
श्री करुणासागर
श्री अचिन्त्य
श्री अगाध
श्री अनन्तशक्ति
श्री श्रीनिवास
श्री भक्तप्रिय
श्री भक्तवत्सल
श्री कल्याणरूप
श्री सच्चिदानंद
श्री परात्पर
श्री निरंजन
श्री योगेश्वर
श्री मायापति
श्री लीलामाधव
श्री देवाधिदेव
श्री पुरुषोत्तम
श्री ब्रह्मस्वरूप
श्री महामाया
श्री मोहन
श्री व्रजविहारी
श्री नित्यलीलासंयुक्त
श्री भक्तार्तिनाशक
श्री धर्मसंस्थापक
श्री भक्तनिवास
श्री नित्यानंद
श्री शुभाङ्कर
श्री दीनबंधु
श्री सच्चिद्रूप
श्री आत्माराम
श्री नीलाचलपति
श्री सुभद्रासहित
श्री बलभद्रसहित
श्री लोकनाथ
श्री रथचालक
श्री रथारूढ़
श्री मौसिमंदिरवासी
श्री नीलाद्रिनाथ
🙏 जप विधि (संक्षेप में)
श्रद्धा से शुद्ध आसन पर बैठकर, कम से कम 108 नामों का स्मरण करें।
हर नाम के बाद "नमः" जोड़ सकते हैं:उदाहरण: “श्री जगन्नाथाय नमः”, “श्री नीलमाधवाय नमः” आदि।
जप के बाद “जय जगन्नाथ” बोलें।

।जय जगन्नाथ! 🌸🙏 जय जगन्नाथ! 🙏



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